किसने घंटी बजा दी नरेंद्र मोदी की
अहमदाबाद के एक अखबार में एक फोटो छपी थी , जिसमें एक रिटायर्ड पुलिस अफसर घंटी बजा रहा है। फोटो कैप्शन में इशारा ये है कि जो घंटी बज रही है, मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की है. इस रिटायर्ड पुलिस अफसर का नाम रमण पिल्लइ भास्करन नायर श्रीकुमार है. आरबी श्रीकुमार गुजरात में एडीशनल डीजीपी पद से रिटायर हुए और उन्हें बृहस्पतिवार को मोदी सरकार के खिलाफ एक कोर्टकेस में जीत हासिल हुई जिसमें उनके प्रमोशन के मामले वाली फाइल को सरकार ने सीलबंद कर दिया था. किसी भी आईपीएस के मन में एक स्वाभाविक महत्वाकांक्षा होती होगी कि वह तरक्की के शीर्ष तक पंहुचकर रिटायर हो अगर वह कर्तव्यपरायण और ईमानदार हो तो.श्रीकुमार के साथ ऐसा नहीं हुआ. उन्होंने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से कह दिया था कि तुम्हारे हाथ बेगुनाहों के खून से रंगे हैं. श्रीकुमार गुजरात कैडर के १५० आईपीएस अफसरों में से अकेले थे जिन्होंने सच कहने का साहस किया और कहा कि भारतीय जनता पार्टी के नेता लोग दंगों के दौरान हालात को काबू करने से अफसरों को रोक रहे थे. श्रीकुमार उस वक्त़ इंटेलिजेंस के प्रमुख थे और उनका तबादला वहां से कर दिया गया. श्रीकुमार ने दंगों की जांच करने वाले नानावटी कमीशन के सामने पेश अपनी डायरी में से ये कहा कि मोदी सरकार के मुख्य सचिव ने उनसे अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने की हिदायत दी थी. श्रीकुमार ने नानावटी कमीशन के सामने चार हलफनामे दायर किये और चारों को पढ़ने के बाद ये साफ हो जाता है कि गोधरा कांड के बाद किस तरह नरेंद्र मोदी, उनके चाटूकार नेता, चिलमची नौकरशाह और चम्मच लोग दंगों के नाम पर सुनियोजित नरसंहार की साजिश को वहशियाना अंजाम दे रहे थे. श्रीकुमार इन सारे लोगों में अकेला खुद्दार आदमी है. उनके मुताबिक राज्य सरकारअसंवैधानिक निर्देश जारी कर रही थी. श्रीकुमार ने कहा उन्हें जो निर्देश दिये गये उनमें पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला का फोन टेप करना, संघ परिवार के लोगों पर निगाह रखने से मना किया जाना, मोदी सरकार के ही मंत्री हरेन पंड्या (सुनीता विलियम्स के चचेरे भाई, जिसकी बाद में हत्या हो गई) के मोबाइल फोन को ट्रैक करना और उस नंबर से हुई बातचीत के नंबरों की हिस्ट्री निकलवाना, और केद्रीय चुनाव आयोग के सामने गुजरात की सांप्रदायिक स्थिति के बारे में सही आकलन न पेश करना जैसी बातें शामिल थीं. श्रीकुमार के मुताबिक उनसे गुजरात सरकार के अफसरों ने कहा था कि वे नानावटी कमीशन के सामने तथ्यों को छिपाएं और गोधरा कांड की कॉंसपिरेसी थ्योरी को मान लें और साथ ही ऐसी कोई बात न कहें जिससे ये पता चल जाए कि सरकारी एजेंसियों ने अपना काम ठीक से नहीं किया.श्रीकुमार ने अपने चौथे हलफनामे में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी का वक्तव्य उद्धृत करते हैं - मैं (मोदी) चाहता हूं कि गोधरा कांड के बाद हिंदू अपने गुस्से का इजहार करें.सच कहने का साहस करने के एवज में मोदी सरकार ने वही किया जो एक डरे हुए नौकरशाह की क्लासिक प्रतिक्रया होती है. चुप कराने की कोशिश. पहले तबादला किया और फिर 1987 के किसी निचले कोर्ट में दायर क्रिमिनल केस का हवाला देते हुए श्रीकुमार को सुपरसीड कर दिया गया और उन्हें डीजीपी नहीं बनने दिया गया. अदालती मामले में श्रीकुमार को तब तक उलझा कर रखा गया जब तक उनका रिटायरमेंट नहीं हो गया. अब जब कोर्ट का सरकार के खिलाफ और श्रीकुमार के पक्ष में फैसला आया है श्रीकुमार को रिटायर हुए आठ महीने हो गये हैं. उन्होंने इस लड़ाई के लिए कानून की डिग्री ली, अपनी कार बेच दी और एक एक करके अपनी ही प्रजा का शिकार करने वाले तंत्र के खिलाफ हलफिया सुबूत दिये.गांधीनगर में अपने मकान शुक्रवार को अकेले बैठे श्रीकुमार से एक गुजराती अखबार ने बात की तो पता चला कि उन्हें एक को छोड़कर किसी भी पुलिस अफसर का फोन नहीं आया. वे डरे हुए हैं कि कहीं सरकार को पता न चल जाए. उन्हें अपने फोन टेप होने का डर है. जिस अफसर का फोन आया है वह भी शायद इसलिए कि वह खुद मेरी ही तरह एक मामले में फंसाया गया है.श्रीकुमार एक आस्तिक हिंदू हैं. नरेंद्र मोदी और उनकी तरह के नेताओं से ज्यादा और निष्ठावान हिंदू. फर्क सिर्फ ये है कि श्रीकुमार का मानना है कि धर्म के केंद्र में मानवता है. हिंसा और नफरत नहीं.
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